अक्टूबर 1962 का एक सुहावना दिन था। लखनऊ के अपने बंगले में बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी ढलती शाम को निहार रहे थे। तभी उनका वॉचमैन हांफते हुए आया और कांपती आवाज़ में कहा, 'सर, चीन ने हिंदुस्तान पर हमला कर दिया है।' ख़बर से पूरी तरह बेअसर अब्बासी ने शांत स्वर में बस इतना ही कहा, 'देखो, फाटक बंद कर दो।'
अब्बासी की बेगम थीं मशहूर ठुमरी गायिका बेगम अख़्तर। अपने शुरुआती दौर में जयपुर और हैदराबाद के राजघरानों के लिए कार्यक्रम पेश करते समय उन्होंने भावनाओं को छुपाने का हुनर सीखा था। वही हुनर अब्बासी ने दिखाया।
पाकिस्तानी अख़बार डान में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, वॉचमैन की दी ख़बर वाकई कितनी बड़ी थी, इसे अगले दिन के नैशनल हेराल्ड अख़बार ने बता दिया। यह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का न्यूज़पेपर था। परंपरा को तोड़ते हुए अख़बार ने मास्टहेड यानी जहां अख़बार का नाम होता है, उसके ऊपर से ख़बर शुरू की। नेहरू का संदेश छपा था, राष्ट्र संकट में है। अपनी पूरी ताकत से इसका बचाव करें। संकट आज फिर खड़ा है।
विदेशी घुसपैठियों से बचाव के लिए दरवाजे बंद करने के उपाय पर बैरिस्टर अब्बासी का एकाधिकार नहीं है। यह नेहरू की ग़लती मानी जाती है कि जब चीनी सेना भारत में घुस रही थी, तब उन्होंने देश की सीमा की रक्षा नहीं की। वर्तमान प्रधानमंत्री भी ख़ुद को देश का चौकीदार कहते हैं। और चौकीदार के रहते घुसपैठिए आ गए।
ईस्टर्न लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर गतिरोध खत्म करने को लेकर चल रही बातचीत के बीच सोमवार रात को गलवान वैली में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई। इससे एक बार फिर यह साफ है कि तनाव दूर करने के लिए बातचीत भले ही ज़रूरी है, लेकिन हालात बिगड़ने की स्थिति में हम कितने तैयार हैं, इसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। क्या भारत के पास वह ताकत है, जो चीन पर भारी पड़े? क्या भारत चीन को हरा सकता है?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, भारत का पलड़ा कई चीज़ों में भारी है। भारत अगर सावधानी से रणनीति बनाए और सीधे मुकाबले के साथ ही चीन को अप्रत्यक्ष तौर पर भी दबाव में ले तो ड्रैगन को हराया जा सकता है।
चीन को उसी के तरीके से हराएंगे
चीन को हराने के लिए भारत चीन की ही एक पुरानी रणनीति को आजमा सकता है। पेंटागन में पूर्व रणनीतिकार और अभी सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी में सीनियर फेलो चेरिस डोहर्टी मानते हैं कि यह रणनीति भारत के काम आ सकती है। उनके मुताबिक चीन के पास भारत से बड़ी सेना है, जो तकनीक के मामले में आगे है। बावजूद इसके चीन की तरह ही ‘हिट एंड रन’ की रणनीति अपनाकर भारत अपने पड़ोसी को सबक सिखा सकता है।
चीन ने यह रणनीति 1950-53 में कोरियन वॉर में अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल की थी। डोहर्टी के मुताबिक, भारत इस वक़्त जिस तरह की चुनौती झेल रहा है, वैसी ही चुनौती 1950 में चीन के सामने थी। तब उसने अपने तीन लाख से अधिक सैनिकों को यूनाइडेट नैशंस के खिलाफ मैदान में उतारा, जिसमें ज्यादातर अमेरिकी सैनिक ही थे। अमेरिकी सैनिक जाहिर तौर पर हथियारों के मामले में आगे थे। लॉजिस्टिक में भी सुपीरियर थे। साथ ही आसमान और समंदर में भी उनका दबदबा था। लेकिन चीनी सैनिकों ने उस चीज़ का इस्तेमाल किया, जो युद्ध में हमेशा ही अहम माना जाता है यानी सरप्राइज।
चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने सरप्राइज फैक्टर रखा और नॉर्दन कोरिया के माउंटेन को कवर की तरह इस्तेमाल किया। इस तरह 1950-51 की सर्दियों में चीन की सेना यूएस की सेना को हराने में सफल रही। चीन के सैनिकों ने एक अमेरिकी इंफ्रेंट्री डिविजन यानी पैदल सेना की एक टुकड़ी करीब-करीब नष्ट कर दी। अमेरिकी डिफेंस एक्सपर्ट कहते हैं कि भारतीय सैनिक भी इसी तरह हिमालय के पहाड़ों का इस्तेमाल कर सकते हैं। पहाड़ों पर छुपकर वह घाटी में नीचे चीनी सैनिकों पर अचानक हमला कर सकते हैं।
पहाड़ों में भारत हावी
भारतीय सेना में डायरेक्टर जनरल इंफ्रेंट्री रह चुके लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी (रिटायर्ड) कहते हैं कि हमारे सैनिक पहाड़ों की लड़ाई लड़ने में सक्षम हैं। चीन ने वियतनाम वॉर के बाद यानी करीब 48 साल से कोई लड़ाई नहीं लड़ी है। उसके पास टेक्नॉलजी जरूर है, लेकिन पहाड़ों में उसे अप्लाई करना बहुत मुश्किल है। चीनी सैनिकों को तंग गलियों से ही गुजरना है और जब वह तंग गलियों से गुजरेंगे तो घात लगाकर उन पर हमला हो सकता है। चीन कभी भी भारत के साथ पहाड़ों में नहीं लड़ेगा।
मलक्का स्ट्रेट है ड्रैगन की कमजोर कड़ी
चीन को भारत हिंद महासागर में भी घेर सकता है। मलक्का स्ट्रेट उसकी कमजोर कड़ी है। चीन का लगभग सारा ट्रेड इसी रास्ते से होता है और यह मलक्का स्ट्रेट से गुजरता है। हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच मुख्य शिपिंग लाइन मलक्का स्ट्रेट है। यह एक संकरा समुद्री गलियारा है, जो 2.8 किलोमीटर चौड़ा है। यहां से हर साल एक लाख शिप गुजरते हैं यानी हर पांच मिनट में एक शिप। इसमें सबसे ज्यादा शिप चीन के हैं।
चीन के कुल तेल का करीब 80 फ़ीसदी आयात मलक्का स्ट्रेट के संकरे समुद्री गलियारे से होता है। इसी का विकल्प तलाशने के लिए वह पाकिस्तान पर नजरें लगाए है और वहां कई परियोजनाएं विकसित कर रहा है। चीन जहां मलक्का स्ट्रेट का विकल्प तैयार करना चाहता है, वहीं भारत ने अपनी अंडमान और निकोबार कमान को इसके मुहाने पर तैनात किया है। चीन समंदर में कमजोर है।
लेफ्टिनेंट जनरल कुलकर्णी कहते हैं कि अगर भारत मलक्का स्ट्रेट पर चीन के लिए दिक्कत खड़ी कर दे तो उसका तेल बंद हो जाएगा। इसी बात का चीन को डर भी है। इसलिए वह चीन-पाकिस्तान इकॉनमी कॉरिडोर बना रहा है ताकि उसे हिंद महासागर पर निर्भर न रहना पड़े।
इंडियन नेवी के पूर्व प्रवक्ता कैप्टन डीके शर्मा (रिटायर्ड) कहते हैं कि भारत हिंद महासागर में चीन के लिए प्रेशर पॉइंट बना सकता है। यहां भारत का पूरा कंट्रोल है। चीन को अप्रत्यक्ष रूप से सबक सिखाया जा सकता है।
दुनिया भी भारत के साथ
लेफ्टिनेंट जनरल कुलकर्णी कहते हैं कि भारत के पड़ोसियों के बीच चीन अपनी एक छवि बनाने की कोशिश कर रहा है। उसकी छवि को महामारी ने वैसे ही जबदरस्त झटका दिया है। वह भारत के साथ लड़ेगा और मार खाएगा तो उसकी बहुत हानि होगी। भारत और चीन के बीच युद्ध की स्थिति में बाकी देश चुप नहीं बैठेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं। भारत और चीन, दोनों ने इसे नकार दिया है। लेकिन अमेरिका का यह कहना एक तरह से चीन को मेसेज देना है। युद्ध के हालात होने पर अमेरिका और रूस जैसे देश भारत का साथ देंगे।
पारंपरिक युद्ध में भारत भारी
कैंब्रिज बेस्ड बेलफर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनैशनल अफेयर्स ने भारत और चीन की सैन्य ताक़त को लेकर एक रिसर्च की। इसमें कहा गया है कि पारंपरिक युद्ध होने की स्थिति में चीन पर भारत भारी पड़ेगा। आमने-सामने की लड़ाई के लिए भारतीय सैनिक ज्यादा तैयार हैं। इस रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय वायुसेना चीन से काफी आगे है। चीन के कब्जे वाले तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में स्थित एयरबेस 14 हज़ार फीट की ऊंचाई पर है।
वैसे तो तिब्बत पठारी इलाक़ा है, लेकिन समुद्र तल से इसकी ऊंचाई ज्यादा है और यही वजह है कि इस ऊंचाई पर चीन के विमान फुल पेलोड के साथ नहीं उड़ सकते यानी कि उसमें फ्यूल भी कम रखना होगा। साथ ही हथियार भी। इसके उलट भारतीय वायुसेना के ज्यादातर एयरबेस मैदानी इलाकों में हैं और वह फुल पेलोड के साथ उड़ान भर सकते हैं यानी अपनी पूरी क्षमता के साथ। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन को अपने सैनिकों और फाइटर की तैनाती से पहले रूस को भी ध्यान में रखना पड़ेगा। वह उस फ्रंट को इग्नोर कर सारी ताकत यहां नहीं लगा सकता, जबकि भारत की नज़र सिर्फ चीन पर होगी।
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