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इस मंदिर में क्यों रोते हैं भगवान, वैज्ञानिक भी नहीं कर पाए इन 6 रहस्यों का पता

 इस मंदिर में क्यों रोते हैं भगवान, वैज्ञानिक भी नहीं कर पाए इन 6 रहस्यों का पता

भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका रहस्‍य आज भी लोगों के लिए एक अनसुलझी पहेली है कहने का अर्थ है कि ये मंदिर समझ से परे हैं। फिर चाहे वह गढ़मुक्‍तेश्‍वर का प्राचीन गंगा मंदिर हो या बक्‍सर का त्रिपुर सुंदरी मंदिर हो। या फिर टिटलागढ़ का रहस्‍यमयी शिव मंदिर या कांगड़ा का भैरव मंदिर। आइए जानते हैं कि इन मंदिरों का क्‍या रहस्‍य है और क्‍यों इन्‍हें जानने के लिए किये गए तमाम प्रयासों का परिणाम शून्‍य रहा। जिसके चलते रिसर्च वर्क को बंद करना पड़ा।

1/6यहां शिवलिंग पर उभरता है अंकुर

गढ़मुक्‍तेश्‍वर स्थित प्राचीन गंगा मंदिर का भी रहस्‍य आज तक कोई समझ नहीं पाया है। मंदिर में स्‍थापित शिवलिंग पर प्र‍त्‍येक वर्ष एक अंकुर उभरता है। जिसके फूटने पर भगवान शिव और अन्‍य देवी-देवताओं की आकृतियां निकलती हैं। इस विषय पर काफी रिसर्च वर्क भी हुआ लेकिन शिवलिंग पर अंकुर का रहस्‍य आज तक कोई समझ नहीं पाया है। यही नहीं मंदिर की सीढ़‍ियों पर अगर कोई पत्‍थर फेंका जाए तो जल के अंदर पत्‍थर मारने जैसी आवाज सुनाई पड़ती है। ऐसा महसूस होता है कि जैसे गंगा मंदिर की सीढ़‍ियों को छूकर गुजरी हों। यह किस वजह से होता है यह भी आज तक कोई नहीं जान पाया है।

2/6कुछ तो है जो आती हैं आवाजें

बिहार के बक्‍सर में तकरीबन 400 साल पहले ‘मां त्रिपुर सुदंरी’ मंदिर का निर्माण हुआ था। इसकी स्‍थापना के बारे में जिक्र मिलता है कि भवानी मिश्र नाम के एक तांत्रिक ने ही इसकी स्‍थापना की थी। इस मंदिर में प्रवेश करते ही आपको एक अलग तरह की शक्ति का आभास हो जाएगा। लेकिन मध्‍य रात्रि में मंदिर परिसर से आवाजें आनी शुरू हो जाती है। कहा जाता है कि यह आवाजें देवी मां की प्रतिमाओं के आपस में बात करने से आती है। आस-पास के लोगों को भी यह आवाजे साफ-साफ सुनाई देती हैं। मंदिर से आने वाली आवाजों पर कई पुरातत्‍व विज्ञानियों ने अध्‍ययन किया लेकिन परिणाम में निराशा ही हाथ आई। फिलहाल पुरातत्‍व विज्ञानियों ने भी यही मान लिया कि कुछ तो है जो मंदिर में आवाजें आती हैं।

यहां गर्म पहाड़ पर होती है एसी जैसी सर्दी

टिटलागढ़ उड़ीसा का सबसे गर्म क्षेत्र माना जाता है। इसी जगह पर एक कुम्‍हड़ा पहाड़ है, जिसपर स्‍थापित है यह अनोखा शिव मंदिर। पथरीली चट्टानों के चलते यहां पर प्रचंड गर्मी होती है। लेकिन मंदिर में गर्मी के मौसम का कोई असर नहीं होता है। यहां एसी से भी ज्‍यादा ठंड होती है। हैरानी का विषय यह है कि यहां प्रचंड गर्मी के चलते मंदिर परिसर के बाहर भक्‍तों के लिए 5 मिनट खड़ा होना भी दुश्‍वार होता है। लेकिन मंदिर के अंदर कदम रखते हैं एसी से भी ज्‍यादा ठंडी हवाओं का अहसास होने लगता है। हालांकि यह वातावरण केवल मंदिर परिसर तक ही रहता है। बाहर आते ही प्रचंड गर्मी परेशान करने लगती है। इसके पीछे क्‍या रहस्‍य है आज तक कोई नहीं जान पाया।

4/6इस मंदिर में तो रोते हैं भगवान

कांगड़ा के बज्रेश्‍वरी देवी मंदिर में भैरव बाबा की अनोखी प्रतिमा है। यहां आसपास के क्षेत्रों में जैसे ही कोई परेशानी आनी वाली होती है तो भैरव बाबा की इस मूर्ति से आंसुओं का गिरना शुरू हो जाता है। स्‍थानीय नागरिक इसी से आने वाली समस्‍याओं का पता लगाते हैं। बता दें कि मंदिर में स्‍थापित यह प्रतिमा 5 हजार साल से भी ज्‍यादा पुरानी है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि जब भी उन्‍हें प्रतिमा से आंसू गिरते हुए दिखते हैं वह भक्‍तों के संकट काटने के लिए प्रभु की विशेष पूजा-अर्चना शुरू कर देते हैं। हालांकि भैरव बाबा के इन आंसुओं के पीछे का रहस्‍य आज तक कोई भी नहीं जान पाया।

5/6इस मंदिर की तो सीढ़‍ियों से निकलती है सरगम

तमिलनाडु में 12वीं सदी में चोल राजाओं ने ‘ऐरावतेश्‍वर मंदिर’ का निर्माण करवाया था। बता दें कि यह बेहद ही अद्भुत मंदिर है। यहां की सीढ़‍ियों पर संगीत गूंजता है। बता दें कि इस मंदिर को बेहद खास वास्‍तुशैली में बनाया गया है। मंदिर की खास बात है तीन सीढ़‍ियां। जिनपर जरा सा भी तेज पैर रखने पर संगीत की अलग-अलग ध्‍वन‍ि सुनाई देने लगती है। लेकिन इस संगीत के पीछे क्‍या रहस्‍य है। इसपर से पर्दा नहीं उठ पाया है। यह मंदिर भोलेनाथ को समर्पित है। मंदिर की स्‍थापना को लेकर स्‍थानीय किवंदतियों के अनुसार यहां देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी ऐरावत ने शिव जी की पूजा की थी। इस वजह से इस मंदिर का नाम ऐरावतेश्‍वर मंदिर हो गया। बता दें कि यह मंदिर महान जीवंत चोल मंदिरों के रूप में जाना जाता है। साथ ही इसे यूनेस्‍को की ओर से वैश्विक धरोहर स्‍थल भी घोषित किया गया है।

6/6यह मंदिर देता है मानसून के दस्‍तक की जानकारी

कानपुर जिले की घाटमपुर तहसील के बेहटा गांव में भगवान जगन्‍नाथ जी का मंदिर है। इस मंदिर में मानसून आने से ठीक 15 दिन पहले मंदिर की छत से पानी टपकने लगता है। इसी से आस-पास के लोगों को बारिश के आने का अंदाजा हो जाता है। कहा जाता है कि मंदिर का इतिहास 5 हजार साल पुराना है। यहां मंदिर में भगवान जगन्‍नाथ, बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। इनके अलावा मंदिर में पद्मनाभम की भी मूर्ति स्‍थापित है। स्‍थानीय निवासी बताते हैं कि सालों से वह मंदिर की छत से टपकने वाली बूंदों से ही मानसून के आने का पता करते हैं। कहते हैं कि इस मंदिर की छत से टपकने वाली बूंदों के हिसाब से ही बारिश भी होती है। यदि बूंदे कम गिरीं तो यह माना जाता है बारिश भी कम होगी। इसके उलट अगर ज्‍यादा तेज और देर तक बूंदे गिरीं तो यह माना जाता है कि बारिश भी खूब होगी। बताते हैं कई बार वैज्ञानिक और पुरातत्‍व विशेषज्ञों ने मंदिर से गिरने वाली बूंदों की पड़ताल की। लेकिन सदियां बीत गई हैं इस रहस्‍य को, आज तक किसी को नहीं पता चल सका कि आखिर मंदिर की छत से टपकने वाली बूंदों का राज क्‍या है।

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